श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानमहायज्ञ. SANSTHANAM.


























श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानमहायज्ञ. SANSTHANAM.

 

जय श्रीमन्नारायण,

सभी मित्रों को भागवत कथा ज्ञानमहायज्ञ में सादर आमंत्रण.
 
तारीख - ०४/०५/२०१५. से १०/०५/२०१५.
स्थान - दुर्गा मन्दिर, बक्सरा, जिला गोड्डा, झारखण्ड.

नियर वैद्यनाथ धाम, देवघर, झारखण्ड.

SANSTHANAM.


।। नमों नारायण ।।

श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानमहायज्ञ. SANSTHANAM.


























श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानमहायज्ञ. SANSTHANAM.

 

जय श्रीमन्नारायण,

सभी मित्रों को भागवत कथा ज्ञानमहायज्ञ में सादर आमंत्रण.
 
तारीख - ०४/०५/२०१५. से १०/०५/२०१५.
स्थान - दुर्गा मन्दिर, बक्सरा, जिला गोड्डा, झारखण्ड.

नियर वैद्यनाथ धाम, देवघर, झारखण्ड.

SANSTHANAM.


।। नमों नारायण ।।

श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानमहायज्ञ. SANSTHANAM.























श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानमहायज्ञ. SANSTHANAM.

 

जय श्रीमन्नारायण,

सभी मित्रों को भागवत कथा ज्ञानमहायज्ञ में सादर आमंत्रण.
तारीख - ०४/०५/२०१५. से १०/०५/२०१५.
स्थान - दुर्गा मन्दिर, बक्सरा, जिला गोड्डा, झारखण्ड.

नियर वैद्यनाथ धाम, देवघर, झारखण्ड.

SANSTHANAM.


।। नमों नारायण ।।

 

परशुराम जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएं. SANSTHANAM.




जय श्रीमन्नारायण,

सभी मित्रों को परशुराम जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएं. SANSTHANAM.


।। नमों नारायण ।।

मनुष्य का मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है ।। BHAGWAT KATHA.

भगवान शिव का अपने ससुर जी का यज्ञ विध्वंस करना.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, भागवत जी की कथा कहते हुए महर्षि मैत्रेय ने विदुर जी से कहा - विदुर जी, भगवान शिव ने अपने ससुर जी का यज्ञ विध्वंस कर दिया, जिसमें माता सती ने अपने प्राणों की आहुति दे दी ।।

विदुर जी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ और उन्होंने पूछा ?

कस्तं चराचरगुरुं निर्वैरं शान्तविग्रहम् ।।
आत्मारामं कथं द्वेष्टि जगतो दैवतं महत् ।।२।।

अर्थ:- महादेव जी भी चराचर के गुरु, वैररहित, शान्तमुर्ती, आत्माराम और जगत के परम आराध्य देव हैं । उनसे भला, कोई क्यों वैर करेगा ? ।।२।।

एतदाख्याहि मे ब्रह्मन्जामातुः श्वशुरस्य च ।।
विद्वेषस्तु यतः प्राणांस्तत्यजे दुस्त्यजान्सती ।।३।।

अर्थ:- भगवन् ! उन ससुर और दामाद में इतना विद्वेष कैसे हो गया, जिसके कारण सती ने अपने दुस्त्यज प्राणों तक की बलि दे दी ? यह आप मुझसे कहिए ।।३।।

मैत्रेय मुनि कहते हैं - विदुर जी, एक बार की बात है, कि प्रजापतियों के विशाल यज्ञायोजन में सभी देवता, मुनि, सिद्ध, गन्धर्वादि आये हुए थे । उसी समय वहाँ प्रजापति दक्ष आये जिन्हें देखकर ब्रह्माजी और भगवान शिव के अतिरिक्त सभी उनके सम्मान में अपने आसन से खड़े हो गए ।।

सभी से इतना सम्मान मिला और अपने दामाद से ही अपमान, ऐसा दक्ष के मन में प्रश्न उठा । और इसे वे बर्दाश्त न कर सके लेकिन अपने क्रोध को दबाते हुए उन्होंने सभी को संबोधित करते हुए कहा -

श्रूयतां ब्रह्मर्षयो मे सहदेवाः सहाग्नयः ।।
साधूनां ब्रुवतो वृत्तं नाज्ञानान्न च मत्सरात् ।।९।।

अर्थ:- सभी ध्यान से सुनें - मैं बड़े प्रेम से कुछ कहना चाहता हूँ । मैं ये बात न तो अपने अज्ञान के कारण अथवा न ही मत्सर से (द्वेषवश) नहीं बल्कि शिष्टाचार की बात कहता हूँ ।।

ये जो शंकर है न ? ये बड़ा ही घमण्डी, पैशाचिक वृत्ति वाला, देवताओं के नाम पर कलंक और सत्पुरुषों के आचरण को भी कलंकित करने वाला है ।।

न जाने मैंने कैसे अपनी कमलनयनी पुत्री का विवाह इस बन्दर के से आँखवाले से कर दिया ?
(गृहीत्वा मृगशावाक्ष्याः पाणिं मर्कटलोचनः ।।)

बहुत कुछ अनाप-सनाप बकबक किया दक्ष ने । और भगवान शिव को चुप देख गुस्से से लाल होकर सभी के मना करने पर भी श्राप दे दिया, कि आजके बाद शिव को यज्ञ का भाग न मिले । लेकिन भगवान शिव बिना कोई प्रतिकार किए उस सभा से चुपचाप उठकर चले गए ।।

फिर तो महाराज श्रापों की झड़ी सी लग गयी नन्दीश्वर ने दक्ष सहित सभी ब्राह्मणों को भी श्राप दिया - की जो लोग शिवद्रोही हैं अथवा होंगें ! उन्हें तत्वज्ञान कभी नहीं होगा पाखंड के ही अनुयायी होंगें । ऐसे ब्राह्मण जन भिखारी ही होंगें आदि-आदि ।।

जब से देखा तुम्हे मुरली वाले- Bhajan.

जब से देखा तुम्हे मुरली वाले,
दिल हमारा तो बस में नहीं हैं।
अपने जलवे की मत पुँछो हमसे जलवाँ कोई तेरा कम नहीं है॥
रोज सजते हो तुम नित नवेले,
रूप तेरा सुहाना बनाया।
जो सजाते हैं तुमको कन्हैया,
वो भी आशिक तेरे कम नहीं हैं।
मोर पंखो का मुकुट सजा है,
अंग पीला पीताम्बर पड़ा है।
होंठ सजाती है प्यारी मुरलिया
शान उसकी भी कुछ कम नहीं हैं।
तुम हो कान्हा तो वो राधा प्यारी,
संग में दोनों की जोड़ी निराली।
ऐसा लगता है मुझको कन्हैया
राधा भी तुमसे ज्यादा सजी हैं॥
जिसने देखी तुम्हारी ये चितवन,
वो तो बेहोश पागल हुए हैं।
उनसे नजरें मिला लो कन्हैया
भक्त तेरे भी कम नहीं हैं....॥

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